मुंबई । अमेरिका की करेंसी डॉलर करीब आठ दशकों से दुनिया की इकॉनामी पर एकछत्र राज करती आई है। आपसी कारोबार के लिए दुनिया डॉलर पर ही निर्भर रहा है लेकिन अब कई देश डॉलर से दूरी बनाना चाहते हैं। यही वजह है कि दुनिया के सेंट्रल बैंक्स के रिजर्व में डॉलर की हिस्सेदारी लगातार गिरती जा रही है। ‎वित्त वर्ष 2024 की चौथी तिमाही में दुनिया के सेंट्रल बैंक्स में डॉलर का शेयर 58.4 फीसदी रह गया है जो तीसरी तिमाही में 59.2 फीसदी था। साल 2000 में इसकी हिस्सेदारी 71 फीसदी थी। हालांकि यह अब भी दूसरे करेंसीज के मुकाबले कहीं आगे हैं। जैसे चीन की करेंसी युआन की हिस्सेदारी चौथी तिमाही में केवल 2.3 फीसदी थी जबकि यूरो की हिस्सेदारी करीब 20 फीसदी है। दूसरी ओर साल 2023 के अंत में दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों के रिजर्व में सोने की हिस्सेदारी 17.6 फीसदी पहुंच गई। यह 27 साल में सबसे ज्यादा है। साल 2022 में जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो अमेरिका ने उस पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए। पश्चिमी देशों ने रूस का करीब आधा विदेशी मुद्रा भंडार फ्रीज कर दिया। रूस के प्रमुख बैंको को ‎स्विफट से हटा दिया गया। यह सिस्टम सीमा पार इंटरनेशनल पेमेंट की सुविधा है। चीन का पहले से ही अमेरिका से तनाव चल रहा है। उसे लग रहा है कि अमेरिका उसके साथ भी यही हथियार चल सकता है। इसे देखते हुए रूस और चीन अपना वित्तीय ढांचा तैयार करने में जुट गए। चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकॉनामी है, जबकि रूस दुनिया का सबसे बड़ा उर्जा ‎निर्यातक है। दोनों देश तेल के लिए युआन में भुगतान कर रहे हैं। सऊदी अरब भी कच्चे तेल के बदले में चीन से युआन में भुगतान लेने को तैयार है। बाकी देश भी डॉलर का विकल्प सोच रहे हैं। इसमें अमेरिका के करीबी दोस्त भी शामिल हो रहे हैं। इससे डॉलर को झटका लगा है। इस बीच साल की पहली तिमाही में दुनियाभर के सेंट्रल बैंकों ने रेकॉर्ड 290 टन सोना खरीदा। केंद्रीय बैंकों के भारी मात्रा में सोना खरीदने के कारण सोने की कीमत में हाल में काफी तेजी आई है।